आइये जानते हैं चमगादड़ को रात में कैसे दिखाई देता है। चमगादड़ एक ऐसा प्राणी है जिसमें बहुत-सी अनोखी बातें पायी जाती हैं। ये आकाश में उड़ने वाला एक स्तनधारी प्राणी है जिसकी 1000 से भी ज्यादा प्रजातियां पायी जाती हैं।
आपने कभी ना कभी किसी पेड़ की डाली या अँधेरी गुफाओं में इसे उल्टा लटके हुए जरूर देखा होगा और आप ये सोचने को मजबूर हो गए होंगे कि आखिर चमगादड़ ऐसा कैसे कर पाता है?
ऐसे में क्यों ना जागरूक पर आज चमगादड़ से जुड़ी ऐसी ही कुछ खास और दिलचस्प बातें जानी जाये। तो चलिए, आज बात करते हैं चमगादड़ की और जानते हैं चमगादड़ को रात में कैसे दिखाई देता है।
चमगादड़ को रात में कैसे दिखाई देता है?
चमगादड़ पूरी तरह से निशाचर होता है यानी जिस रात में हम अपने घरों में जाकर सो जाते हैं उस अँधेरे में ये प्राणी बाहर निकलता है और शिकार करता है। ये ऐसा एकमात्र स्तनधारी है जो उड़ सकता है और जिसके लिए रात के अँधेरे में उड़ना भी आसान है।
चमगादड़ पेड़ों पर उलटे इसलिए लटकते हैं क्योंकि उलटे लटकने से चमगादड़ आसानी से उड़ान भर सकते हैं। इनके लिए पक्षियों की तरह जमीन से उड़ान भरना संभव नहीं है क्योंकि इनके पीछे के पैर बहुत छोटे और अविकसित होते हैं जिसके कारण चमगादड़ दौड़ कर गति नहीं पकड़ पाते हैं।
दिन-भर अँधेरी गुफाओं में उलटे लटककर आराम करने वाले चमगादड़ गिरते नहीं हैं क्योंकि उनके पैरों की नसें इस तरह व्यवस्थित होती हैं कि उनका वजन ही उनके पंजों को मजबूती से पकड़ बनाये रखने में मदद करता है।
ऐसा नहीं है कि चमगादड़ को दिखाई नहीं देता है। असल में दिन के प्रकाश में देख पाने की क्षमता चमगादड़ में थोड़ी कम होती है जबकि रात के गहरे अँधेरे में छोटे से छोटे शिकार को पहचानना उनके लिए बहुत आसान होता है।
अँधेरे में शिकार की खोज में निकले चमगादड़, शिकार तक पहुँचने के लिए मुँह से तेज गति से ध्वनि तरंगें निकालते हैं जिसे ‘इकोलोकेशन’ प्रक्रिया कहा जाता हैं। इस प्रक्रिया में चमगादड़ अपने मुँह या नाक से ध्वनि तरंगें भेजते हैं और जब ये तरंगें किसी वस्तु से टकराती है तो इको उत्पन्न होता है।
ये इको उस वस्तु या जीव से टकराकर चमगादड़ के कानों में लौटता है जिसे सुनकर चमगादड़ पता लगाते हैं कि उनका शिकार कितना बड़ा है और किस आकार का है।
शिकार के नजदीक आने के साथ ये तरंगें तेज होती जाती है जिनकी मदद से चमगादड़ को शिकार की सही स्थिति और दिशा का अंदाज़ा हो जाता है और वो तुरंत लपककर अपने शिकार को पकड़ लेते हैं।
चमगादड़ ऐसी ध्वनि का इस्तेमाल शिकार करने के साथ-साथ एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए भी करते हैं।
शोध बताते हैं कि शिकार हासिल करने के लिए चमगादड़ों में प्रतियोगिता भी रहती है जिसमें कोई दूसरा चमगादड़ एक खास किस्म की ध्वनि की मदद से, पहले चमगादड़ को रास्ते से भटका देता है और बीच में ही उसके शिकार को हथिया लेता है।
रिसर्च बताते हैं कि शिकार को पकड़ने के लिए चमगादड़ कानों का ज्यादा इस्तेमाल करेंगे या आँखों का, ये चमगादड़ की प्रजाति पर भी निर्भर करता है क्योंकि कीड़ों को पकड़ने की बजाये मकरंद पीने वाले चमगादड़ ‘इकोलोकेशन’ का इस्तेमाल नहीं करते हैं।
ऐसी प्रजाति के चमगादड़ आँखों से स्पष्ट देख पाते हैं। कुछ चमगादड़ों में अल्ट्रा वॉयलेट लाइट को देख पाने की क्षमता भी होती है।